मंगलवार, 26 अक्तूबर 2010

पंडित विश्व मोहन भट्ट को सुनते हुए

फौलादी तारों पर खुरच कर
मोहिनी वाणी में तुम
लिखते/ रचते हो जो
उसे सुनना
आकाश होना है
स्वरों की गंगोत्री में पलकें धो
आत्मा की स्वर्णिम परतें खोलना है
भीतर के शून्य का
बाहर के शून्य में मिलना
अस्तित्व का अनंत में घुलना है.
-- सुमीता

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