शनिवार, 11 दिसंबर 2010

ईश्वर- तुमसे

द्रुत गति, चंचल  ...
या धीर, सधे कदम ...
या हांफते, कराहते, डगमगाते
केवल मुझे ही आना हो तुमतक
तो
तुम ईश्वर ही सही
नहीं मुझे कबूल
तुम्हारी दोस्ती.

अपनी अघट ऊर्जा, श्रमशक्ति, मेधा
प्राणों की बिजली और अक्षरा आस्था के
पंचमहाभूतों से
रच लूंगी अपना सुन्दर संसार
पृथ्वी और आकाश.

केवल तुम ही नहीं
रचयिता-
मैं भी तो हूँ.

-सुमीता