बुधवार, 22 अगस्त 2012

न्यूटन

सागर तट पर
सबसे चिकना पत्थर या
सबसे सुन्दर सीप
खोजने में तल्लीन
विस्मय भरी तुम्हारी अंगुलियाँ
पारे से दंशित हो जाती रहीं ...

जगतजननी की गोद बैठे
रोष भरे बालक!
तुम (प्रकृति के) कैसे शिशु थे ?
वह अपना सारा वैभव, सारे रहस्य
तुमपर
करती रही निछावर
और उम्रभर
तुम करते रहे नफ़रत
कि माँ की छाया भर
छू लेने को आकुल
दूरस्थ चर्च के माथे जड़े क्रॉस के
तीन सिरों पर ध्यानस्थ तुम्हारी चेतना
ईश के त्रिविध-त्रिरूप
को गुपचुप धता बताती
ही रही...

जैसे किसी उद्धत-उद्दंड खरगोश के बच्चे को
मिल गयी हो
शेर की झलक-
सहमे और भयभीत तुम
हठ में या आत्मरक्षा में
जाने किस-किस के विरुद्ध
चौतरफा
बेआवाज़ तर्कों के धारदार हथियार भाँजते हुए भी 
पवित्र आदेशों की
कर न सके अवहेलना.
(ईश्वर के प्रति जब-जब खंडित हुई तुम्हारी आस्था
मानसिक आघातों ने द्वार खटखटाया.)
 

तुम तन्मय मौन के नीरव एकांत में
उतर गए
तर गए
.

धरती के भीतर का दुर्निवार आकर्षण
एक सेव भर के गिरने से
समझ सकने वाले !

अपनी माता के भरे-पूरे स्त्रीत्व के
सहज मानवीय उत्कंठित आकर्षण को
आजीवन कैसे रहे नकारते ?

कि ब्रह्मचारी बने रहने की
भीष्म प्रतिज्ञा के साथ ही
स्त्री प्रजाति से घृणा करने का
पुरुषोचित अधिकार आरक्षित कर लिए
?
यह जिद्दी दुराग्रह मात्र 
क्या
तुम्हारी मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला
के किसी प्रयोग का निकष था-
अँधियारे और उजाले के क्रमिक सह-अस्तित्व की तरह ?!
तुम्हारी सत्यान्वेषी उद्दात कुशाग्रता और
(आलोचकों के प्रति)
क्रूर अनुदारता के (बे)मेल की तरह ?!

सत्य के संधान को एकाग्र तुम्हारी
अतिन्द्रिय अंतर्दृष्टि
शाश्वत सर्वज्ञ का
तुम्हें दिया गया अनमोल उपहार था.
सार्वकालिक गणितज्ञ के स्पंदनों से
सीधे जुड़े मनस्वी ब्रह्मऋषि!
तुम्हारी अचूक सूझ
तुम्हारी सतत साधना की
नायाब परिणति थी .

खगोलीय पिंडों के आपसी तनाव
और सप्तरंगी प्रकाश के बीच जारी
अनवरत लुकाछिपी
के अद्वितीय साक्षी !
आधुनिक वैज्ञानिक क्रांति के अग्रदूत !
तुम्हारे भगीरथ प्रयत्नों से
लहालोट
हुईं धरती की वैज्ञानिक संवेदनाएं
और साकार होने लगीं मनुष्य की अतिरंजित कलपनाएँ .

आधुनिक वैज्ञानिक जगत के परम पुरखे!
तुम्हारी उपलब्धिओं से उपकृत
तुम्हारे मस्तिष्क की कीमिया
समझने का प्रयास करती
पीढ़ियाँ
तुम्हारी ही अँगुली थामकर
चलीं .


न्यूटन !
हम नमन करते हैं तुम्हारा
और प्रार्थना भी
तुम फिर से उतर आओ पृथिवी पर
प्रकृति के मोद भरे बालक की तरह.

--सुमीता