सोमवार, 29 नवंबर 2010

बनारस को मेरी याद दिलाना

बनारस को मेरी याद दिलाना
मेरे परदेशी दोस्त !

हर उस ठाव पर जाना
जहाँ हमने कवितायें पढी
बहसें कीं, गीत गुनगुनाएं
 जीवन के शतरंगों से बुने
ताजा और जीवंत वे क्षण
तुमसे हाथ मिलायेंगे.
उस पुरातन शहर के
एक और रस से
तुम्हारा परिचय करवाएंगे.
धरती के एक हिस्से पर
अपनी सभी हरी शाखों के साथ
तने खड़े पेड़ की जड़ें
कितनी गहरी और दूरस्थ हैं
इसकी झलक दिखलायेंगे.

अपनी लहरीली तीव्रता के विरुद्ध
जहाँ गंगा भी मंथर गंभीर गति बहती है
इसे रससिक्त करती है, होती है
तुम भी
इसकी ध्वनियों और रंगों को
धीरे-धीरे पहचानना
हवा के तेज झोकें की तरह
गुजर मत जाना दोस्त !
घाटों पर बैठना
सीढियों से बतियाना
अपने देश/शहर का हाल-चाल बताना
पूर्वी ठसक से गर्वोन्नत
यह शहर सिर्फ बतकहियों में ही रस नहीं लेता
ज्ञान, कला और संस्कृति के
भारत के इस मुखपत्र को
तुम्हारे देश में हुए/हो रहे
नवीन अन्वेषणों के बारे में बताना
यह कुछ नए आयाम जोड़ेगा
कुछ अपनी सुनाएगा .
प्राचीनतम भब्यता और
आधुनिकतम ज्ञान-स्फूर्ति से छलछलाता
यह मस्त, बेबाक शहर
अपनी मलंग उदारता के साथ
तुम्हें अपनाएगा
बार-बार बुलाएगा.

तुम जब-जब बनारस जाना
इसे मेरी याद दिलाना.

-- सुमीता