मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

jalasaaghar: सामान्यतः

jalasaaghar: सामान्यतः

सामान्यतः


दूसरे की खूबियों पर मुग्ध होते 
बलि-बलि जाते 
अपने अहम् का विसर्जन करते 
(जब हम समझते हैं 
कि प्रेम में हैं)
हम स्वयं को भूलने लगते हैं.

दूसरे की खामियों को 
स्वीकारते, पचाते 
(यानी उदारता का अभ्यास करते)
हम दूषित, विषैले होते जाते हैं.

दूसरे की गलतियों की सजा 
खुद को देते
- हम मरने लगते हैं.

-- सुमीता



jalasaaghar: मित्रधन

jalasaaghar: मित्रधन

jalasaaghar: मित्रधन

jalasaaghar: मित्रधन

मित्रधन


   मित्रधन

जो पाया, जो खोया
सहेजा, संजोया
उनमें
जो कुछ मोल मिला
सब माटी का ठीकरा
मित्रधन बस
अनमोल ठहरा.

बंधु मेरे ! हमारी पहचान के बल
लम्बे वर्षों के पार से
दी जो दस्तक
पहचान ही लेगी तुम्हारी चेतना
अपने पुराने गाँव/शहर की
मिट्टी की सोंधी खुशबू ,
हवा और पानी के उसी ताज़गी भरे
स्वाद की तरह
जिसकी हम निर्मिति हैं.

-- सुमीता