मंगलवार, 19 अप्रैल 2011

सामान्यतः


दूसरे की खूबियों पर मुग्ध होते 
बलि-बलि जाते 
अपने अहम् का विसर्जन करते 
(जब हम समझते हैं 
कि प्रेम में हैं)
हम स्वयं को भूलने लगते हैं.

दूसरे की खामियों को 
स्वीकारते, पचाते 
(यानी उदारता का अभ्यास करते)
हम दूषित, विषैले होते जाते हैं.

दूसरे की गलतियों की सजा 
खुद को देते
- हम मरने लगते हैं.

-- सुमीता



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