मित्रधन
जो पाया, जो खोया
सहेजा, संजोया
उनमें
जो कुछ मोल मिला
सब माटी का ठीकरा
मित्रधन बस
अनमोल ठहरा.
बंधु मेरे ! हमारी पहचान के बल
लम्बे वर्षों के पार से
दी जो दस्तक
पहचान ही लेगी तुम्हारी चेतना
अपने पुराने गाँव/शहर की
मिट्टी की सोंधी खुशबू ,
हवा और पानी के उसी ताज़गी भरे
स्वाद की तरह
जिसकी हम निर्मिति हैं.
जो पाया, जो खोया
सहेजा, संजोया
उनमें
जो कुछ मोल मिला
सब माटी का ठीकरा
मित्रधन बस
अनमोल ठहरा.
बंधु मेरे ! हमारी पहचान के बल
लम्बे वर्षों के पार से
दी जो दस्तक
पहचान ही लेगी तुम्हारी चेतना
अपने पुराने गाँव/शहर की
मिट्टी की सोंधी खुशबू ,
हवा और पानी के उसी ताज़गी भरे
स्वाद की तरह
जिसकी हम निर्मिति हैं.
-- सुमीता
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