शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2010

स्त्री-३

उतर गया काजल
बिंदी, चूड़ी, करधन और पायल
परी, अप्सरा, रूपसी और
हृदयदेश की साम्राज्ञी अब वह नहीं रही
केवल सहयोगिनी भी नहीं
माता, पत्नी, मित्र और
रमनेशु रम्भा
की सभी भूमिकाएं प्रवीणता से निबाही
कार्येषु मंत्री पद पर सदियों विराजी.

सचेत हो चुकी अब.

गुत्थम गुत्था भीड़ में
आठ तह मोड़कर छोटा सा कागज
लिख लेती कविता की कुछ पंतियाँ
चूल्हे पर दाल चढ़ा
रंगती कैनवास
आते जाते रास्ते में
जाँच लेती होमवर्क की कॉपियां
पीठ पर बच्चा बांध
कमा लेती रोजी
लड़ लेती युद्ध
तब भी मनुष्य कितनी प्रतिशत  ?
बेहिसाब श्रम की चुटकी भर कीमत?!

मन मस्तिष्क के दसों दरवाजे खोल
भांप रही है दुनिया का मिजाज
हवा का रुख...

अब नहीं भरमेगी
भीड़ से या अकेले होने से
अब डर नहीं उसे
अपने रास्ते तलाशेगी
 अपनी मंजिल पायेगी.

सुमीता

कोई टिप्पणी नहीं: