सागर
विनाश के मुहाने पर
बेचैनियों और प्रार्थना की मुद्रा में
खड़ी सभ्यता को
अग्निप्रलय से बचा लेने
तुम भी आओ हमारे साथ...
जैसे कभी किसी की पुकार से पृथ्वी पर
उतर आई थी गंगा
सागर!
हम पुकारते है तुम्हें.
- सुमीता
(लम्बी कविता "सागर" का अंश)
रविवार, 24 अक्टूबर 2010
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