शनिवार, 26 मई 2012

जीवन है, जीवन का नर्तन है

 सपने में सपनों की कड़ियाँ हैं
तलछट का कंकड़ है
काई है फिसलन है 
दंशों से भरे हुए सर्पिल आवर्तन हैं 
औंधे मुँह धम-धडाम 
चाक-चिक हूम-हा
कूँ-काँ, चू-चां, सड़-सड़ाक
जीवन है, जीवन का नर्तन है

रहस्यमय घुमावदार रास्तों के 
खतरनाक अंधे मोड़ों पर 
चमकदार गोपन के असंख्य छिलकों सी 
भूमार्गी सीढियाँ 
पाताल से आकाश तक के असमाप्त गलियारे में 
तकनीकी सज्जा का आकर्षक आधुनिक फैशन परेड है
सच से आभासी कृत्रिम चकाचौंध में रोशनी 
अंधियारे का, ध्वनिओं और मौनों का 
सहमा-सा कथन है

भरम है- जागने का भरम है
देह की सुसुप्ति से प्रवाहमान काल बीच 
दैनंदिन गणित के निश्चित फॉर्मूलों-प्रमेयों में 
विचारों की किरचें हैं
बिगड़ने को बेचैन अनगिन व्यवस्थाएं:
दिमागी चूहा सैकड़ों कमरों वाले 
अपने शाही बिल में चैन भर की जगह तलाशता 
दौड़ता ही फिरता है 
निरर्थक सक्रियता?- भीतर किसी 
धड़कते जिन्दा पिंड का तिल-तिल मरण है 

सार्थक की तलाश:
बौधिक, सृजनधर्मा, कलाविद, आलोचक 
गुप्तचर, सिपाही, राजनेता, विज्ञानवेत्ता
हथियारबंद लोमहर्षक लंबा सा कारवां 
मेरे भीतर कदमताल करता 
गलिओं-गलिओं, नालिओं, पुलिओं,
खेतों-झाड़ियों, पाठशालाओं, पुस्तकालयों 
और प्रयोगशालाओं में 
चाक-चौबंद, चौकस फैला है
निरीह दुखों को मथकर शक्तिमान प्राण का 
अथक शोध बहुत गहन है 
इसीलिए मान लूँ
जो अ-जीवन है, विकास का वचन है

कभी भी पिघलकर बह जाने वाली 
बर्फ सी या कुहा सी जमी 
गहरी उदासी का ठंडा असहाय दर्द:
सरल-वक्र, क्षैतिज-लम्बवत, वृतों-वलयों 
असंख्य जटिल आकारों-प्रकारों के 
एक-दूसरे को काटते जाने कितने कोणों वाले 
भव्य तिलिस्मी दुर्भेद्य किले में 
धारदार हथियारों से बचाते 
शानदार कवचों और चमचमाते ढालों की 
परतों के भीतर 
सृजन की एक नन्हीं-सी आँच 
खुद से खुदी के हरण का सच-सा मरम है.


---- सुमीता


1 टिप्पणी:

अलावलपुरिया ने कहा…

जीवन की ऊहा-पोह ,भागम-भाग और लगातार चलती दिमागी रस्सा-कशी को बहुत खूब उतारा है आपने इस कविता में।बहुत जीवंत शब्द-चित्र हैं जीवन के ।