स्याही सा जमा आकाश तबले पर
चाँदी का चँद्रमा
जाने कौन वह अरूप
अपरूप जिसकी अंगुलियाँ
कौंधती हैं बिजली सी
द्रुत, चंचल, अजस्र तरंगों का रेला...
स्वरों के दुकूल पर
तम के पार
जाने कौन..
- सुमीता
बुधवार, 13 अक्टूबर 2010
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